स्वर्गीय पद्म श्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकरजी की शिक्षा बतौर आर्टिस्ट ( जी डी आर्ट ) मुम्बई में हुई थी पर उन्होंने अपना रुख इतिहास, प्राक् इतिहास, पुरावशेषविद्या और मुद्राशास्त्र की ओर किया और उसी क्षेत्र में अपने योगदान से विश्व-विख्यात हो गये ।

उनके बडे भाई स्व. लक्ष्मण श्रीधर वाकणकरजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनिअरिंग की उपाधि प्राप्त की थी । उन्होंने मृच्छिल्प – कला (ceramic art) में निपुणता हासिल की और बादमें देवनागरी लिपी को कम्प्यूटर के लिए अंकबद्ध किया ।

यह साइट भी उन्हीं के बाल-परिजनोंने बनायी है और वे भी इस क्षेत्र से जुडे हुए नहीं हैं, पर दिग्गजोंसे प्रेरित होकर उन्होंने सिर्फ महसूस ही नहीं किया बल्कि इस महान कार्य को दुनियाके सामने प्रस्तुत करना अपना सामाजिक उत्तरदायित्व समझा ।

इस साइट की विषयवस्तु को लिखने में कतिपय संदर्भों तथा वार्तालापों का आधार लेना पड़ा । कई टेक्निकल कमियाँ या समझनेमें त्रुटियाँ रही होंगी पर हमने बहुत निष्पक्ष रीतीसे खुले दिमाग से, पाठकों की विचार प्रणाली पर दबाव डालने के हेतु विना, प्रस्तुत करनेकी कोशिश की है ।

सरस्वती नदी शोध अभियान

संस्कृतियों के बनने में नदियों ने बहुत मदत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभायी हैं । कतिपय पूर्व-ऐतिहासिक संस्कृतियाँ नदियों के किनारेपर ही पनपी । भारत की संस्कृति जो सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानी जाती है, वे पूर्व ऐतिहासिक काल के हड़प्पा और मोहेनजो-दारोके अवशेष सिंधुनदी के किनारे पर पाये गये जो वर्तमान पाकिस्तान में हैं। सरस्वती नदी का उल्लेख वैदिक साहित्य में बहुतायत से आता है । उसका उल्लेख नदीतमा – बहुत बड़ी नदी इस अर्थ में आता है ।

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