आदि बद्री के पास सरस्वती नदी मैदानी इलाके में बहने लगती है । इसी स्थान से अभियान का प्रारंभ हुआ । इसी स्थान पर सोभनदी और थोडा आगे जाकर धानीपुरा में मर्कण्डा नदी सरस्वती में मिलती है । यहाँ टीम को पुरान काल की बडी ईंटें मिली । और आगे नीचे उतरकर अरुणा नदी का संगम-स्थान . यहाँ टीम को पुराने शिल्प मिले । उनमें से एक था सूर्य की मूर्ति थी, स्थानीय लोग गलती से उसे शिव की मूर्ति मानते थे । सोम नदी के संगम पर बिलासपूर या ( व्यासपुर ) बसा है । ऐसा माना जाता है कि व्यास ऋषी ने कथन किया हुआ महाभारत गणेश गी ने यहीं लिपीबद्ध किया था । यहाँ से शैवालिक पर्वतराशि देखी जा सकती है ।उसके आगे मान पर्वत है जहाँ की हिमनदियों में ही सरस्वती का उद्गम है । बाद में वह अन्तर्धान होती है और मार्कण्डेय आश्रम के पास प्रकट होती है । टीम को वहाँ गणेश की मूर्ति मिली जिसकी सूँड बांयी ओर मुडी है । वहाँ से टीम कपालमोचन पहुँची, जहाँ शुंग और गुप्त कालीन मूर्तियाँ मिली, जिनमें एक गजलक्ष्मी की है ।

टीम जगधारी (युगंधरा) से आगे यमुना-नगरपहुँची. वेदिक काल में यमुना नदी इसके नज़दीक से बहती थी।

वहाँ से टीम मुस्तफाबाद (पुराना नाम सारस्वत नगर) पहुँची ।दो शिलालेखों में से एकपुरातत्व संग्रहालय, ग्वालेर और दूसरापरमार राजा भोजसे जिसमें इस स्थान का उल्लेख मिलता है । यहाँ से टीम आगे कुरुक्षेत्र गयी । यहाँ पुरातन काल में बहुत बडा तालाब था जिसमें बहुत कमल खिले थे । ऐसा कहाजाता है कि यहीं राजा पुरूरवा की उर्वशी से मुलाकात हुई थी ।

यहाँ कई सेमिनार, चर्चाएँ, प्रेस मीटिंग्स हुई ।नर्कतारी, ज्योतिसार, सन्निध्सार, बीबीपुर, मार्कण्डेय आश्रम, भद्रकाली,देखने के बादटीम आगे स्थानेश्वर (थानेश्वर ) के लिए रवाना हुई । यहाँ गुरुद्वारा है, जहाँ गुरु गोविंदसिंहजी के जूतों का दर्शन हो सकता है ।

यहाँ विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए कि जनरल कनिंगहॅम (१८८८-८९ ) रोजर्स, डी पी स्पूनर, एच. एल. श्रीवास्तवऔर कई अन्यशोधकर्ताओं को बहुत पुरातन वस्तुएँ, सिक्के, मूर्तियाँ यहाँ से प्राप्त हुई l राजा कर्नाका किला , पोलार्थेह भगवानपुरा और थानेश्वरऐसे स्थान हैं , जो बहुत कीमती पुरातन वस्तुओं को यहाँ से ले जा सके ।

उत्खनन के समय पिंजोर कालका, अहियान (अंबाला)और मनसा देवी के आसपास प्राक् -ऐतिहासिक औजार वहुत वडीमात्रा में पाये गये । पूर्व हड़प्पा काल के रंगे हुए और धुँएँ से सने कई मिट्टी के बर्तनसरस्वती और दृशद्वती की घाटीमें, भगवानपुर, बाणवाली, सिरसा, मीठाताल, राजाकर्णाका किला, दौलतपुर, मिर्जापुर, सूध, बालू, कुणाल अग्रोहा आदि(संदर्भ – उदायगीनकुरुक्षेत्र , अरुण केसरवाणी – १९९० पृष्ठ १४-४४ )

मार्कंडेय आश्रम से १०-१२ किमी. पर एक स्थान है – समानभव, ऐसा माना जाता है कि इसी स्थानपर विश्वामित्रऔर परशुराम ने तपस्या की थी ।.

बाद में टीम पृथुदक (पोहोवा) और कपिस्थल (कैथल) गयी । एसा माना जाता है कि, वैनराजा के पुत्र सम्राट पृथुस ने यहाँ यज्ञ किया था । वहाँ से टीम आगे सूजमा गयी जो व्यास के पुत्र सुखदेव की जगह मानी जाती है ।टीम यहाँ से आगे कोलायत गयी, जहाँ कपिल मुनी का आश्रम था। लोकोद्धार में कई मूर्तियाँ मिली ।जिनमें चतुर्मुखी शिवलिग भी है ।

आगे टीम कसून और जिन्द गयी ( दुर्योधन महाभारत के अंत में यहीं एक तालाब में छिप गया था ) । टीम आगे राखीगढ गयी ।

हिस्सार में सरस्वती नदी के सूखे पात्र का अध्ययन कर के टीम उदयन्तगिरी (फतेहाबाद) गयी। यहाँ अशोक-स्तंभदेखा जिसपर संस्कृत श्लोक खुदे हैं ।

सिरसा में एक बहुत बडा सेमिनार आयोजित किया गया था ।सिर्फ फतेहाबाद में एक कुएँ में मीठ पानी लगा । (शायद नीचे से सरस्वती नदी बहती हो ।)

यहाँ से आगे राजस्थान में से प्रवास शुरू होता है ।

सिरसा से टीम नोहार गयी । नोहार के आसपास की पहाडियों में गेहूँ और चाँवल के जले हुए दाने पाये गये । जिन्हें तुरन्त रेडिओ कार्बन डेटिंग टेस्ट के लिए PRL अहमदाबाद भेजा गया . . आगे गोगामढी में गुप्त कालीन कई मूर्तियां मिली । पर उस काल के पहले की कोई पुरातन वस्तु नहीं मिली। यह भी एक संभावना है कि वहाँ पहले समुद्र रहा होगा ।और बादमें जमीन ऊपर उठ आयी होगी ।

बादमें टीम हनुमानगढ कालीबंगा और बाणावली गयी । हड़प्पा की एक सील बाणावली में मिली । उसपर हडप्पा शैली का ही सांड छपा था और हडप्पन भाषा में ही कुछ लिखा था । टीम आगे बीकानेर गयी । बीकानेर संग्रहालय मेंसरस्वती का पुतला मिला ।

यहाँ पर एक विशेष बात है किबहुत से कुएँ ३०० -४०० फीट गहरे हैं । टीम ने यहाँ २०-३० मीटर ऊंचे बालू के टीलों का अध्ययन किया ।

पोखरन जाते समय और फलोरा होते हुए जयसलमेर जाते समय टीम को विभिन्न पौधों के बहुत फॉसिल्स मिले । टीम को बिंजदसार के पास एक सूखे तालाब में मध्य-पुराश्मयुग केऔर अश्मयुग के तथा अश्मयुग औरउत्तर अश्मयुगकालीन बडी संख्या में औजार मिले।

आगे देवका में सूर्य-मंदिर के पास अश्मयुगीन पत्थर की कुल्हाडी तथा पत्थर का भाला मिला ।

जब टीम गोगाक्षेत्र पहुँची तो मछली और समुद्री साही के फॉसिल्स मुलतानी मिट्टी की परतों में गडे मिले, जिससे संकेत मिलते हैं कि यहाँ कभी समुद्र होगा । आगे डाकनगढा में ग्रेनाइट पत्थरों में प्रस्तर आश्रय भी मिले जिनपर मध्य अश्मकालीन ( ६ – १०,००० वर्ष पूर्व )पेण्टिंग्स देखे गये । हो सकता है, यह कोई टापू होगा ।

बाद मे गुजरात से गुजरते समय आबू, अंबाजी, सिद्धपूर, अनाहिलवाड पत्तन, नानु कच्छ, लोथल सिहोर करते हुए देहोत्सर्ग में वालुकामय प्रदेश में सरस्वती नदी मंदिर में यज्ञ करके अभियान की समाप्ति हुई ।

इस तरह एक महिने की कालावधी में टीम ने ४००० किमी की यात्रा की ।

श्री. ए.व्ही. शंकरन् ने अपने लेख- पुरातन नदी सरस्वती वालुकामय प्रदेश में लुप्त हो गयी –में कालक्रम के अनुसार सारांश देते हुए इस विषय की समाप्ति की —

  1. १०,००० वर्ष पूर्व हराभरा और उपजाऊ प्रदेश था क्योंकि वहाँ की आबोहवा नम थी
  2. सरस्वती नदी आज से ९००० वर्ष पूर्व प्रमुख नदी थी ।
  3. ६००० वर्ष बाद (याने आज ले ३००० वर्ष पूर्व) सरस्वती संकुचित हुई और सूख गयी ।
  4. वैदिक काल में सरस्वती वर्तमान यमुना और सतलज के बीच प्रदेश से बहती थी।
  5. आज हालँकि सरस्स्ती नदी लुप्त हो गयी है, पर मर्कंडा,चौतांगा और घग्गर अभी भी जीवित हैं ।
  6. सरस्वती नदी का उद्गम भद्रपंच पर्वत शृंगो की हिमनदियों में पश्चिमी गढवाल के नैतवार में हुआ। वह भावनपूर या बलचापूर के पास आदि बद्री में नीचे उतरी और नैऋत्य दिशा में मुडकर पंजाब, हरियाणा राजस्थान से गजरती हुई गुजरात में आयी ।
  7. सरस्वती नदी की ३ उपनदियाँ थीं – सतलज ( शतद्रु ), दृशद्वती ( घग्गर ),और वेदिक यमुना.
  8. वे सब मिलकर नहर के रूपमें बह पडी, जिसे आज घग्गर या राजस्थान में हकरा या सिंध में नारा कहा जाता है ।
  9. उसकी उपनदियों ने अपना मार्ग बदला या उसे बाजूवाली नदियों ने ग्रहण कर लिया होगा।
  10. सरस्वती इधर-उधर तालाबों पोखरों के रूप में ( उदाहरणार्थ लूणकरण सार, डिडवाणा, सांबर, जयसलमेरपचपद्रा तालाब आदि ) आज भी हैं।
  11. पुरातन कालीन मौसम, ऑक्सीजन आयसेटोप का अध्ययन, वायुनिर्मित तथा जलनिर्मित रेत के थर्मोल्युमिनिसेंट का अध्ययन,तालाबों के तलभाग के जमाव के रेडिओ कार्बन अध्ययन ने तथा पुरातत्वशास्त्रीय अध्ययनने बहुत सारी जानकारी उपलब्ध करायी है ।
  12. वर्तमान में डिजिटल प्रगति, Satellite IRS-1C (1995) से रेडिओ चित्रीकरण के द्वारा सतही वैशिष्ठ्यों के साथ साथ थर वालुकामय प्रदेश में रेत के नीचे प्राक्-ऐतिहासिक झरनोंका भी पता लगा है ।
  13. सिंधु और सरस्वती के बीच कोई प्राक्-ऐतिहासिक झरने नहीं पाये गये जिससे यह निश्चित हुआ कि सिंधु और सरस्वती दोनों स्वतंत्र नदियाँ थीं ।
  14. आज के हिमालय से किसी तरह सीधा जल-स्रोत या भूमिगत कोई झरना नहीं दिखता जिस से पानी मिलता हो ।
  15. पतियाला के पास घग्गर (सरस्वती) नदी एकदम चौडी हो जाती है । हो सकता है शायद सतलज और यमुना कामिलाप कारण हो ।
  16. बाद में रोपड के पास सतलज नदी पश्चिम की ओर जाकर सिंधु नदी में मिलती है । इससे घग्गर में पानी की कमी होकर सरस्वती के लुप्त होने के लिए उत्तरदायी हो ।

सरस्वती नदी के संबंध में विभिन्न स्वतंत्र शोधकर्ताओं के कार्य का महत्त्व

  1. अमल घोष को पाकिस्तान सीमा से हनुमानगढ / सूरतगढ तक हड़प्पा कालीन २५ स्थान मिले जो सिंधु नदी से काफी दूर हैं ।
  2. डॉ. आर मुघल को बहावलपूर क्षेत्र में ३०० से अधिक स्थान मिले ।
  3. बिश्त द्वारा फतेहबाद वायव्य में १५ कि मी पर बाणावली उत्खनन किया गया ।
  4. कुरुक्षेत्र रोपड के दक्षिण में और सरस्वती के दाहिने किनारे पर बसा है |
  5. राजस्थान के भूगर्भीय जल विभाग में और Central Arid Zone Research Institute एक जैसा ही काम करनेवाले डॉ. एस एम राव और डॉ. के एम कुलकर्णी ने कई भूगर्भीय शुद्ध जल के झरनों की खोज की है जिसका tritium बहुत कम था जो यह दर्शाता है कि पानी बहुत पुराना है, जिसमें स्वाभाविक ही radio isotope होंगे । उन्होने हिसाब लगाया कि पानी ८००० वर्ष से अधिक पुराना होगा ।. .
  6. सौ छिद्रों वाला मिट्टी का बर्तन मिला जो वेदिक देवताओं की पूजा के काम आता था, सिनीवाली और रुद्र नदी के किनारे पर बहुत जगहों पर मिले ।
  7. सूखे विजन्दसार तालाब की तलहटीमें अश्मयुग और मध्य-अश्मयुग के औजार मिले । देवका के पास सूर्यमंदिर के पास अश्मयुगीन पत्थर की कुल्हाडी पायी गयी ।
  8. बीकानेर प्रदेश में २०-३०मीटर ऊँचे टीले हैं उनका उत्खनन आवश्यक है ।
  9. बाणावली में हड़प्पा काल की सील मिली । उसपरसांड बना हुआ है और हड़प्पा की भाषामें कुछ लिखा है । बाणावली, रंगमहल और कालीबंगा वैसी ही कई वस्तुएँ मिली ।
  10. लुप्त नदी के किनारे पर कालीबंगा के पास बार्ली के खेत भी दिखायी दिये ।
  11. कालीबंगा के उत्खनन में यज्ञकुंड मिला जो अच्छी परिस्थिती में है। हड़प्पा, लोथल और सुरकोटडा में वैसे ही अनेक यज्ञकुंड मिले ।
  12. आर्य बाहर से आये इस परिकल्पना की पुष्टी में हमेशा यह कहा जाता है कि सिंधु नदी की घाटी में घोडों के अवशेष नहीं पाये गये । पर सरस्वतीघाटी में मिली घोडोंकी हड्डियाँ तथा मिट्टी के खिलौनों में मिट्टी के बने घोडे मिलने पर उनके तर्क को नकारा जा सकता है ।
  13. ६-१०,००० पूर्व के प्रस्तर आश्रय तथा प्रस्तर पेंटिंग्सDakanGaddaग्रॅनाइट में मिले |
  14. दूसरी परिकल्पना जो मॉर्टिमर व्हीलर तथा स्टुआर्ट पिगॉट ले रखी कि आर्य बाहर से आये और स्थानीय लोगों को हरा कर उन्हें खदेड दिया । पर कहीं बाणों के नोक या तलवारोंके टुकडे, टूटे रथ आदि उनकीपरिकल्पना की पुष्टि में कहीं नहीं मिले ।
  15. ऐतरेय ब्राह्मण में एक जगह उल्लेख है हवन में विघ्न उत्पन्न करनेवाले राक्षसों को डराने के लिए यज्ञकुंडके आसपास चमकीली दीवार बांध दी थी । कालीबंगा में यज्ञकुंड के आसपास ऐसी दीवारों के खंडहर मिले हैं ।

पुरातत्ववेत्ताओं ने अभीतक जो विस्तृत कार्य किया है उन्हें ३८० – ४०० हड़प्पा के पूर्व और उत्तर काल के स्थान मिले हैं ।

इसीसे प्रवृत्त होकर डॉ. व्ही. एस. वाकणकर यह सुझाव देते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का नाम सारस्वत सभ्यता कर देना चाहिए ।

इस परियोजना के दौरान टीम ने वैसे ही अन्य स्थानों का भी अवलोकन किया । जिसके विवरण में स्थानों को मुख्य तीन कालानुसार वर्गीकृत किया गया । १. हड़प्पा पूर्वस्थान २. हड़प्पा के समयस्थान ३. हड़प्पा पश्चात्स्थान

जिला राज्य हड़प्पा पूर्वस्थान हड़प्पा के समयस्थान हड़प्पा पश्चात्स्थान कुल स्थान
संगरूर पंजाब २०
भटिंडा पंजाब ११ १४ १० ३२
कुरक्षेत्र हरियाणा ६१ ७०
हिस्सार हरियाणा २७ २१ २६ ७४
जिन्द हरियाणा ४३ ९५ १४७
हनुमानगढ राजस्थान २८ ३२

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