अपने निरीक्षणों को, अपनी भावनाओं को, इच्छा-आकांक्षों को तथा अपने सपनोंको व्यक्त करने का एक विशेष माध्यम – कला को मनुष्य ने बहुत पहलेसे अपना लिया है । मनुष्य ने कला के विभिन्न अंगों को इसके लिए उपयोग किया है – प्रस्तर कला भी उन्हां अंगो में से एक है ।

प्रस्तर कला का इतिहास बहुत रोचक है । प्रस्तर कला दुनियाभर के अनेक देशों में पायी गयी है जैसे -अमेरिका, दक्षिण आफ्रिका, फ्रान्स, स्पेन, ऑस्ट्रिया इत्यादि. स्पेन और फ्रान्स की बहुत प्रसिद्ध हैं ।अल्तामीरा जो उत्तरी स्पेन में हैं, सन् १८८० में खोजी गयी थी । पुरातनत्व के हिसाब से उनको आज से करीब २५,००० वर्ष पूर्व की माना जाता है । उसी तरह फ्रान्स मे लास्को की चित्रकारी है।

भारत में सब से पहले जिसका लिखित उल्लेख पाया जाता है वह है जे. कॉकबर्न और ए. कार्लाइल द्वारा सन् १८८० में मिर्जापूर के पास खोजे गये प्रस्तर आश्रय. यहाँ जंगली रिनो का कुछ लोग शिकार करते हुए चित्रित हैं । जिस पद्धती से शिकार करते हुए दिखाया है तथा लोगों के हाथों में भाले हैं, खोजी का अंदाज है कि यह चित्र ताम्रयुग का होगा ।

उसी समय शिकारी और कर्नल डी. एच. गोर्डन ने पचमढी और होशंगाबाद में भी प्रस्तर चित्रों को खोजा था ।

स्वातंत्र्य के बाद डॉ. व्ही.एस. वाकणकर, प्रा. के. डी. वाजपेयी, प्र.शंकर तिवारी डॉ. एस.के. पांडे जैसे कई विशेषज्ञों ने प्रस्तर कलाके संशोधन में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

हालाँ कि पूरे भारतभर में कई स्थानोंपर प्रस्तर कला के नमूने पाये गये हैं, पर सबसे अधिक मिले मध्यप्रदेश में – विशेषतः भीमबेटका भोजपूर, भोपाल, बुधनी, पानगुराडिया, तालपूर, होशंगाबाद, रायसेन, सांची, नागोरी, विदिशा, हाथीतोल,खरवाई, पानगवा इ.

डॉ. व्ही. एस. वाकणकर द्वारा खोजी गयी भीमबेटका को ही यह साइट समर्पित है ।

दुनिया का प्रस्तर आश्रयों का सबसे बडा समूह भीमबेटका में है, जो भोपाल के दक्षिण में भोपाल से ५५ किलो मीटर पर (अ.22o 40″; रे.77o 35′) पर जिला रायसेन में है । भीमबेटका भोपाल इटारसी लाइन पर ओबेदुल्लागंज और बरखेडा स्टेशन के पास भियानपूर गाँव के पास है ।

डॉ. विष्णू श्रीधर वाकणकर ने भीमबेटका की खोज १९५७ में की थी. सन् १९७१-७२ में उन्हें ऐसा लगा कि यहाँ प्राक्-ऐतिहासिक मानव के कुछ अवशेष हो सकते हैं । तब उन्होंने सघन खोज हेतु बहुत सर्व्हे कर उत्खनन किया । भीमबेटका की प्रस्तर कला के बाबत पहली रिपोर्ट Indian Archaeological Survey of India annual report (Indian Archaeology – A review 1971 – 72, pages 30 – 31). 2003 में लिखी, फिर भीमबेटका को “World Heritage Site” UNESCO द्वारा घोषित किया गया ।

उत्खनन से लगता है भीमबेटका की गुफाएँ ६ से ८ लाख वर्ष पुरानी होंगी पर जो प्रस्तर चित्रण हैं वे अंदाजन १०,००० वर्ष पुराने होंगे । चित्र लाल, सफेद और हरे रंग में रंगाये गये हैं । शोणितिज से (haematite के टुकडे गुफाओं में मिले) लाल रंग बनाया होगा। प्रस्तर आश्रय १८५० हेक्टर में फैले हैं ।

यह प्रस्तर आश्रय रातपानी अभयारण्य में है अतः नैसर्गिक सौंदर्य तो यहाँ बहुत है ।इन विंध्याचल की वादियों में छोटे मध्यम और बडे प्रस्तर आश्रय बहुतायत से हैं ।

भीमबेटका की विशेषता यह है कि इस स्थान के आश्रयों में क्रमबद्धता है बिल्कुल अश्मयुग से (पत्थर के औजारों की संस्कृति से – ५०००००से १५०,००० वर्ष पूर्व तक) तव से लेकर ऐतिहासिक ( आज से ३०० वर्ष पूर्व तक) गोंड राजाओं के काल तक .

भीमबेटका वर्ल्ड हेरिटेज स्थान के प्रस्तर आश्रय पांच समूहों में वर्गीकृत होते हैं ।बाद में रेनहट्टी रोड पर दो समूह और आये पर वे हेरिटेज में शामिल नहीं किये गये ।

समूह स्थान आश्रयों की संख्या क्रमांक विशेषताएँ
I करीतलाई से विनायका(रेल्वे लाइन की पूर्व में) 12 A – 7; B – 5 कुछ चित्रित प्रस्तर आश्रय. अंदाजन 20 स्तूप अवशेषतथा एक दीवार – विहार होने का संकेत देते हैं ।
II विनायका से छोटी जामुन झिरी (रेल्वे लाइन की पश्चिम में) 196 A – 17; B – 72; C – 18; D – 19; E – 42; F – 9; G – 4 and H – 15 जानी जाती है । यहाँ मौर्य काल के यक्ष के चित्र पाये जाते हैं । किले की चौडी दीवार के अवशेष तथा अनेक मकान घनी वस्ती का संकेत देती हैं । मध्य प्रस्तर कालीन (~10,000 वर्ष पूर्व) औजार यहाँ मिलते हैं ।
III छोटी जामुन झिरी से बडी जामुन झिरी 291 A – 41; B – 72; C – 95 : E – 26; F – 50 and G – 7 यहाँ मुख्य आश्रय हैं जिन्हें “सभागृह”, “Zoo Rock”, बाबाजी की हाथी गुफा “, इत्यादि नाम दिये हैं ।यहाँ शुंग काल के शिलालेख भी मिलते हैं । उत्खनन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, डेक्कन कॉलेज पुणे तथा लोक कला संग्रहालय, स्वित्झरलंड द्वारा किया गया ।
IV बडी जामुन झिरी से फूटी तलाई – लाखाज्वार – पूर्व 175 A – 63; B – 70; C – 35 and D – 7 यहाँ मध्य प्रस्तरयुग के कुछ बहुत सुंदर प्रस्तरचित्र हैं । . परमार काल के मंदिर के अवशेष भी पाये गये हैं । यहाँ बडे मकान और बांध आदि भी पाये जाते हैं ।
V फूटी तलाई से रेनहटी रोडकॉलनी – लाखज्वार -पश्चिम 95 A – 15; B – 10 तथा C – 70. C इस समूह को नंबर नहीं दिया गया
VI रेनहटी रोड के पास द्विभाजित पहाडी A12 पहाडी का दक्षिण हिस्सा C12 झरने के दोनो तरफ 32 A12; C12
VII जोंन्दा के पास मुनी बाबा की पहाडी 10 A – 70

इस तरह 730 प्रस्तर आश्रयों में लगभग 500 प्रस्तर चित्र हैं ।

उत्खनन :

मुख्य उत्खनन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा -.डॉ. व्ही.एस्. वाकणकर के मार्गदर्शन में हुआ.

बाद में डेक्कन कॉलेज के डॉ. व्ही. एन, मिश्रा तथा .from Folk Art Museum, Basle, Switzerland,के Susan Haas द्वारा अन्य स्थानोंपर स्वतंत्र रीतीसे उत्खनन किया गया ।

निम्नलिखित उत्खनन का विवरण इस प्रकार –

विक्रम वि.वि उज्जैन (डॉ.व्ही.एस्. वाकणकर) डेक्कन कॉलेज के डॉ. व्ही. एन, मिश्रा Folk Art Museum Basle Switzerland Dr. Susan Haas
समूह III F 24 – ट्रेंच I, IW, II and IIN समूह III F – 23 ट्रेंच I Group III F – 22
समूह III F – 14 – ट्रेंच IV समूह III C – 16
समूह III F – 16 – ट्रेंच V समूह III C12
समूह III A – 28 – ट्रेंच VII
समूह III A – 29 – ट्रेंच VIII
समूह III A – 30 – ट्रेंच VI
समूह III A – 33 – ट्रेंच II

उत्खनन में विशेष रूप से प्राप्त

  • पत्थर के औजार (Acheulian tools) काफी अच्छी हालत में
  • III A – 30 में दीवार Acheulian काल की (दुनिया में मानव निर्मित सबसे प्राचीन यही दीवार होगी )
  • पुरातन

डॉ. व्ही. एस. वाकणकर की डॉ. एस के आर्य, नारायण व्यास,दलजीत कौर गिल , ए एस. ओढेकर तथा नारायण भट ने सहायता मदद की थी ।

दुर्गाश्रम के बाबा शालीग्राम समूह की मदद की थी ।

R. R. Brooks तथ उनकी पत्नी Mary Brooks from Massachusetts University ने भी डॉ.व्ही एस. वाकणकर की मदद की थी |

उसी तरह उज्जैन के सत्यनारायण और मनोहर व्यास ने, तथा इन्दौर के आर एस. गर्ग, डॉ. एस एन यादव, शर्मा वकील साहब ने बहुत मदद की ।

इस के बाद डॉ. वाकणकर ने अपना शोध कार्य चालू रखा और निम्नलिखित प्रस्तर आश्रयों का भीमबेटका के आसपास अन्वेषण किया ।

शाहगंज घाट (11 Nos.) (77o 45″ and 23o 54′)
नगनपूर के पास अमरगढ (7 Nos.) (77o 47″ and 23o 58′)
बुधनी के पास छोटी बडी दांत (27 Nos.) (77o 47″ and 23o 58′)
वाजस्नमिता (नर्मदा पुल से २ कि.मी.) (2 Nos.) (77o 40″ and 23o 45′)
चूनापानी (भीमबेटका के १० कि.मी. दक्षिणमें) (2 Nos.) (77o 35″ and 23o 50′)

भीमबेटका को सही ढंग से समझने के लिए इसके काल विभाजन और पारिभाषिक शब्दावली को समझने की आवश्यकता है ।

Prehistoric Time line

काल / Ages वर्ष वर्णन
Lower Paleolithic
आद्य पुराश्मकाल
दो भाग 500,000 – 300,000 वर्ष पूर्व 200,000 – 50 / 60,000 वर्ष पूर्व इस का के लोग समूह में रहते थे । वे बिना पूँछ के वानर ( गोरिल्ला, चिम्पॅन्झी ) से अलग थे । फिर भी Homo Sapiens के पूर्व के थे पर वे दो पैरोंपर चलते थे आपस में बातचीत करते थे। कंकड़ पत्थरों के औजार बनाते थे । कंकड़- पत्थरों के औजार सर्व प्रथम भाग पहले भीमबेटका में ही देखे गये । दुसरा भाग जब युरोप में Neanderthals का अस्तित्व था । जिनकी विशेषता पत्थर की कुल्हाडी, पत्थर के भाले आदि युरोप में थे और भीमबेटका में भी थे ।
Middle Paleolithic
मध्य पुराश्मकाल
60,000 – 30,000 वर्ष पूर्व भारी पत्थर के हथियार, लकडी और पत्थर दोनोंका उपयोग करके बनाये हुए हथियार जैसे लकडी के डंडे के सिरेपर पत्थर । भीमबेटका के सभी खंदकों में पाये गये ।
Upper Paleolithic
उत्तर पुराश्मकाल
30,000 – 10,000 वर्ष पूर्व शीघ्र विकास. चकमक पत्थर(Flint), सूर्यकान्त मणि (Jasper), शृंग प्रस्तर (Chert)इ. से औजार बनाना प्रारंभ हुआ । धनुष बाण का शोध और विकास, अण्वस्त्र(Microliths) का बाण के नोंक के लिए तथा काटने, फाडने तथा छेद करने आदि के लिए विकसित । शतुर्मुर्ग के अंडेका सजाया हुआ बाह्य कवच प्राप्त हुआ ।
Mesolithic
मध्याश्मकाल
12,000 – 5,000 वर्ष पूर्व प्रस्तर कला की बहुत अधिक मात्रा में निर्मिति. प्रस्तर कला की विषयवस्तु जीवन के विभिन्न अंगों से संबद्ध. भीमबेटका दुनिया का एकदम अनूठा स्थान है जो सब युगों का क्रमवार और सम्यक् दर्शन कराता है.।
Chalcolithic
ताम्राश्मयुग
4,200 कयठा जैसी सभ्य वस्तियाँ. कृषि का प्रारंभ. तांबे के बर्तन तथा अन्य वस्तुएँ. बर्तनों पर तथा प्रस्तर कला इत्यादि में भूमिती की आकृतियाँ दिखती हैं । पशुपालन,तांबे के आभूषण
Neolithic
नवाश्मयुग
Early Historic
आद्य अैतिहासिक
1,300 – 1,000 लोहयुग का प्रारंभ . कृषि, व्यापार परिवहन का विकास यज्ञ प्रारंभ. बौद्धों, जैन द्वारा और वैष्णवों द्वारा गुफाओं में ध्यान प्रारंभ, ब्राह्मी लिपी का उपयोग, Punch marked सिक्के
Midle Historic
मध्य अैतिहासिक
1,000 – 500 गणपती, दुर्गा , शिव देखे जा सकते हैं । प्रस्तर कला को आसान किया । गुफाओं को छोडकर मैदानी भाग में आ गये ।
Historic
अैतिहासिक
500 ई.पूर्व – 300 A.D.ईस्वी राजाओं और राज्योंका लिखित इतिहास
Modern
आधुनिक
300 ईस्वी. से वर्तमान

गुफाओंसे उत्खनन में प्राप्त पुरातन सामग्री का Radio carbon dating उन्हें 17,000 – 15,000 वर्तमान से वर्ष पूर्व कालावधि में रखता है ।

भीमबेटका के उत्खनन में गडे हुए कंकालों के अवशेषोंका रेडिओ कार्बन डेटिंग इस प्रकार

हड्डियाँ form III F – 14 PRL50 2045 ± 110 वर्ष वर्तमान के पूर्व
हड्डियाँ from III F – 14 PRL50 5855 ± 110 वर्ष वर्तमान के पूर्व

भीमबेटका में उत्खनन में उनके स्मशान से प्राप्त ४ ऐतिहासिक काल के, १आद्य ऐतिहासिक काल का,तथा २ प्राक्-ऐतिहासिक काल के लगते हैं ।

जो कंकाल ऐतिहासिक काल का है उसके साथ लोहे की कुल्हाडी और पानी का घडा भी मृतक के पास गडा मिला ।

एक कंकाल जो प्राक् ऐतिहासिक है, वह मध्याश्म काल का है । कंकाल के अवशेषों में सिर, पसलियाँ, हाथ पाँव सब बेतरतीबी से गडे थे ।

इस से पुराना जो मिला वह ८-१० साल के बालक का होगा । हालाँ कि मृत्यु का कारण समझ में नहीं आता, पर लगता है बालक को लाल रंग से रंगा था । ( गेरू शोणित के टुकडे उसे पीसने का पत्थर शरीर के पास मिले हैं । ).उसके शरीर के सब तरफ गोल गोल पत्थर रखे थे और बाद में उसे दफनाया गया था । उसके गले में एक लोलक भी था जो बिल्कुल सावुत था खराब नहीं हुआ था ।

उसी गुफा में और अधिक गहराई में एक और कंकाल मिला । वह शायद उत्तर-पुराश्मकाल का होगा (१५-२० हजार वर्ष पूर्व). वह Homo Sapiens (आदि मानव) होगा क्योंकि उसकी खोपडी की हड्डियाँ बहुत मोटी हैं । कपाल पीछे की तरफ ढलानवाला है । और जबडा वर्तमान मानव की खोपडी की तुलना में काफी बडा है । उसके दांत भी काटने के कारण और चबाने के कारण घिसे हुए थे । उसके गले में भी एक पत्थर का लोलक था ।

भीमबेटका के उत्खनन में दूसरी दो विशेष वस्तुएँ मिली वह हैं —

  1. 1. डॉ. व्ही एन मिश्रा को III F – 32 के उत्खनन के दौरान एक पत्थर की दीवार की नींव मिली । डॉ. वाकणकर को भी III A – 30 के उत्खनन में पूर्व से पश्चिम आश्रय के समांतर दीवार मिली । य़ह दीवार दुनिया की सबसे पहली मानव निर्मित दीवार होगी Acheulian period (१ लाख से ५० हजार वर्ष ).
  2. सिक्के : III F – 24 और 8 भोपाल राजाओं के दो punch marked सिक्के विनायका गुफा में तथा बाबा शालीग्राम की गुफा में मिले । III A – 30 में दो सिक्के मिले और III A – 28 सिक्के मिले और III A – 28 में मांडवगढ के सुलतान के सिक्के मिले । परमार कालीन कई सींपियाँ III A – 28,29 तथा 30.में मिलीं । बहुत पुराना हड्डीका बना आभूषण का लोलक ऊपर उल्लेख किये बालक के कंकाल पर III A – 28 में पाया गया ।
  3. भीमबेटका में हिरन, कृष्णसारमृग, सूअर, मोर आदि के कंकालों के अवशेष पाये गये जो उत्तर पुराश्मकाल के हैं ।
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